कांग्रेस ने नारी यानी ‘शक्ति’ का साथ पाने के लिए एक लाख रुपये देने की महालक्ष्मी योजना लाने का वादा किया है

भोपाल। लोकसभा चुनाव आते ही ‘शक्ति’ पर खींचतान मच गई है। मध्य प्रदेश ही नहीं, देश भर में महिलाओं की पूछपरख बढ़ गई है। कांग्रेस ने नारी यानी ‘शक्ति’ का साथ पाने के लिए एक लाख रुपये देने की महालक्ष्मी योजना लाने का वादा किया है, लेकिन विडंबना यह है कि वोटों की खातिर महिलाओं पर अपनत्व, स्नेह लुटा रहे दोनों राष्ट्रीय दलों के संगठन और सरकार में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपेक्षानुसार नहीं है।
शक्ति की चर्चा तब आरंभ हुई, जब राहुल गांधी ने बयान दिया कि हम मोदी या भाजपा से नहीं बल्कि एक ‘शक्ति’ से लड़ रहे हैं। बस फिर क्या था, भाजपा ने इसे सनातन का अपमान बता दिया। बैकफुट पर आकर राहुल गांधी और कांग्रेस बचाव में उतर आई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, वे मां-बहन रूपी ‘शक्ति’ की रक्षा में अपनी जान लगा देंगे।
हालांकि, शक्ति के उपासक बने दोनों दलों के नेतृत्व की प्रथम पंक्ति में महिलाओं की कमी है। मध्य प्रदेश में उमा भारती भाजपा में यह हैसियत रखती थीं, यद्यपि पिछले 18 वर्षों में केंद्र सरकार में मंत्री बनने के बावजूद वह क्रमशः अपना जादू खो चुकी हैं। यही हाल कांग्रेस का है। महिलाओं के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली पार्टी के प्रदेश संगठन में अहम भूमिका में एक भी महिला नहीं है।
इसी तरह कांग्रेस में जमुना देवी कभी मुख्यमंत्री पद की दावेदार हुआ करती थीं, उनके जाने के बाद कोई बड़ा चेहरा महिला चेहरा कांग्रेस में आज तक उभर कर सामने नहीं आ सका है। इधर, संसद के 543 सदस्यों में 83 महिलाएं हैं जबकि, 230 सदस्यों वाली मप्र विधानसभा में 27 महिलाएं हैं।
मध्य प्रदेश में राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी भले ही शीर्ष स्तर पर नहीं बढ़ रही है लेकिन प्रदेश में पंचायत और नगरीय निकाय जैसी संस्थाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व निरंतर बढ़ रहा है। प्रदेश के 16 नगर निगमों में से नौ में महिला महापौर हैं।

विधानसभा और लोकसभा में महिला आरक्षण नहीं है फिर भी यहां महिलाओं की संख्या कम नहीं है। मप्र विधानसभा में लगभग 11 प्रतिशत से ज्यादा यानी कुल 230 सदस्यों वाले सदन में 27 है। वहीं, लोकसभा में 29 में से चार सांसद महिलाएं हैं। वहीं, इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से कोटा बढ़ाकर छह महिलाओं को टिकट दी गई है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में वर्ष 2008 में सर्वाधिक महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। तब कांग्रेस ने 37 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया था जिनमें आठ ने चुनाव जीता। जबकि भाजपा ने 25 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया। इनमें से 14 ने जीत दर्ज की, एक अन्य सीट पर बसपा की उषा चौधरी को विजय मिली थी।

वर्ष 2013 में भाजपा ने 28 महिला प्रत्याशी उतारे और 22 पार्टी के भरोसे पर खरी उतरीं। जबकि कांग्रेस ने 23 महिलाओं को टिकट दिया लेकिन केवल छह ही जीत सकीं। इस चुनाव में दो अन्य दलों की भी महिलाएं जीती। पंद्रहवी विधानसभा 2018 में महिलाओं की संख्या में कमी आई और यह घटकर नौ प्रतिशत यानी 21 हो गई थी। जो 2023 में बढ़कर फिर 27 पर पहुंच गई।

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Author: kesarianews

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